शिवचरित्र

शिवाजी महाराज का विकृत इतिहास: सच्चाई, राजनीति और जेम्स लेन की साजिश

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“नाम में क्या रखा है?” — यह सवाल तब बेमानी हो जाता है, जब हम ‘शिवाजी’ जैसे नाम की बात करते हैं। इस तीन अक्षरों वाले नाम ने न सिर्फ भारत को, बल्कि पूरी दुनिया को अपनी छाप से प्रभावित किया है।

🔥 इतिहास की अधूरी तस्वीर

आज भी छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन और उनका कार्य दुनिया के सामने केवल 5–10% ही सामने आया है।
शेष इतिहास या तो अंधेरे में है या फिर जानबूझकर विकृत कर दिया गया है।

कई तथाकथित इतिहासकारों और कवियों (शाहिरों) ने “ईमानदारी” के नाम पर शिवरायों के चरित्र को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है। इनमें से अधिकांश लेखक ब्राह्मण जाति से संबंधित रहे हैं — क्या यह मात्र संयोग है?

🧠 ब्राह्मणवादी सोच बनाम शिवाजी का समावेशी शासन

छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक धर्मनिरपेक्ष, समावेशी, और न्याय-संपन्न शासन की स्थापना की थी। उन्होंने अपने दरबार में योग्यता को प्राथमिकता दी, जाति को नहीं।

  • ब्राह्मण मोरोपंत पिंगळे को पेशवा बनाया
  • मराठा हम्बीरराव मोहिते को सेनापति नियुक्त किया
  • मुस्लिम सेनानायक सिद्दी इब्राहिम को अहम पद पर रखा

इसने उस समय की ब्राह्मणीय सत्ता-संस्थाओं को असहज कर दिया। यही कारण है कि शिवाजी महाराज के खिलाफ एक सूक्ष्म वैचारिक युद्ध शुरू हुआ — जो उनकी मृत्यु के बाद भी जारी रहा।

🧾 राज्याभिषेक और “शुद्ध क्षत्रिय” विवाद

शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय भी कुछ ब्राह्मणों ने उन्हें “शुद्ध क्षत्रिय” मानने से इनकार कर दिया था। अंततः काशी (वाराणसी) से गागाभट्ट को बुलाकर उनका क्षत्रियत्व प्रमाणित कराया गया। यह घटना उस समय की जातिवादी मानसिकता को स्पष्ट रूप से उजागर करती है।

🧨 काल्पनिक साहित्य और विकृति का दौर

ब्राह्मणवादी मराठों और इतिहासकारों द्वारा शिवाजी महाराज पर कई काल्पनिक रचनाएं लिखी गईं, जिनमें उनका चरित्र या तो बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया या जानबूझकर छोटा करके।

यह प्रक्रिया आज भी रुक नहीं रही है। इस श्रृंखला की एक आधुनिक कड़ी है — जेम्स लेन

⚠️ जेम्स लेन की किताब: एक सुनियोजित हमला

अमेरिकी लेखक जेम्स लेन ने अपनी पुस्तक “Shivaji: Hindu King in Islamic India” में शिवाजी महाराज और उनकी माता जिजाबाई पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं, जिनका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं था।

उनका स्रोत कुछ अज्ञात मराठी लेखक की विवादित डायरी थी। इस किताब में ऐसी बातें थीं जो न केवल तथ्यहीन थीं, बल्कि मर्यादाओं का उल्लंघन भी करती थीं।

इस पुस्तक के विरोध में महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए और किताब पर प्रतिबंध लगा।

✅ निष्कर्ष: शिवराय केवल राजा नहीं, विचार हैं

छत्रपति शिवाजी महाराज केवल एक मराठा राजा नहीं थे — वे एक राष्ट्रनिर्माता, प्रशासक, और सामाजिक सुधारक थे।
उनकी सोच जाति, धर्म और वर्ग से ऊपर थी। उनका इतिहास केवल युद्धों की कहानियों तक सीमित नहीं, बल्कि वह एक जन-आधारित व्यवस्था की नींव भी है।

👉 ऐसे महापुरुष का इतिहास अगर विकृत किया जाए, तो यह सिर्फ ऐतिहासिक अपराध नहीं, बल्कि विचारों की हत्या है।


💬 आपका क्या विचार है?

क्या आज का समाज शिवाजी महाराज के इतिहास को सही रूप में समझ पा रहा है?

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